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The Weight of the Fauji Uniform: A Dedicated Poem by Varsha Sharma

Post[Image Credit: ADGPI Website]

A Fauji’s uniform represents far more than rank or identity. It is shaped by early dreams, rigorous preparation, and an unwavering sense of duty. It absorbs heat, dust, hunger, and silence—bearing witness to borders guarded and choices made in service of the nation. What we see is the uniform; what we often miss is the journey behind it.

Varsha Sharma, a member of the Fauji Days community, reflects on that unseen resolve behind a soldier’s uniform through her poem:

जिस वर्दी से महक आ रही शौर्य 'त्याग , बलिदानों की

क्या जानो तुम कैसे बनती वर्दी मेरे जवानों की

तीन रंग के स्वप्न देखता बालक कोई बचपन से

और बनाती खुद को लोहा बाला कोई यौवन से

जन-गण-मन का गीत गा रही रहट खेत-खलिहानों की

क्या जानो तुम कैसे बनती वर्दी मेरे जवानों की

भूख - प्यास वो चीज़ नहीं जो पथ से उनको डिगा सके

लू की ताप नहीं कदमों को सीमा पर से हटा सके

जिसको छू कर गर्व करे है रेती रेगिस्तानों की

क्या जानो तुम कैसे बनती वर्दी मेरे जवानों की

जो जन्मा भारत में उसकी रक्षा का प्रण धरती है

विश्व पटल पर आज महा शक्ति का चित्रण करती है

शिव तांडव के स्त्रोत से काँपे धरती कब्रिस्तानों की

क्या जानो तुम कैसे बनती वर्दी मेरे जवानों की

गोली से भी तेज चले जो उसके हाथ कटारें हैं

दुश्मन काँपे जिसके भय से गगन भेद हुंकारें हैं

खुकरी ले कर तोप उड़ाने वाले उन दीवानों की

क्या जानो तुम कैसे बनती वर्दी मेरे जवानों की

—वर्षा शर्मा